भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अनुबन्ध / अर्चना कुमारी

1,844 bytes added, 16:31, 26 अगस्त 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कुमारी |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
अभिशप्त रहा है अतीत
वर्तमान के दोषारोपण के लिए

कदम-दर-कदम बढते हुए
भविष्य की ओर
पूर्वाग्रह, आलोचना हो जाती है
और आलोचना, समीक्षा

आत्मा की दिव्यता में
दृष्टि स्वस्थ होकर पुनरावृत्ति करती है
पुरातन अवलोकनों का

नव्यागत काल के कोरे कागज पर
लिखी जाती है
पुरानी कहानी, नये तेवर में
मिटाकर काली स्याहियों के धŽबे
रेखांकन का लाल रंग हरा हो जाता है

मन की आवृत्ति की धुन
गुनगुन शरद की धूप होकर
मुंडेर के कबूतरों के दाने में बदलकर
अहसास के पंख को परवाज़ देते हैं

समय ही बदलता है
समय के अर्थ
और बदलता है रंग भी
समय ही समय का

मेरे हिस्से के काले समय का
नया कलेवर
हरा रंग हो तुम
लाल होते हैं सदा
प्रेम के अनुबन्ध।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits