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|संग्रह=शहर छोड़ते हुए / रामनरेश पाठक
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<poem>
प्रभू!
वापस ले लो
इन बंजर फासलों
वीरान सूखी स्थितियों
और
मेरी उठी हुई
भुजाओं के बीच से
दैवी सत्ता को
अभी मेरी छाती में
एक उछलती नदी
भरी है दोनों कूल !
</poem>