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|रचनाकार=सुरेश चंद्रा
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<poem>
कह लेना सुख हुआ
परिधियाँ लाँघ लीं
बोलियाँ दुख लगीं
चुप्पियाँ बाँध लीं
सतर्ष को संघर्ष का हथियार
दो मुँहा धार, दो मुँहा धार
</poem>
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कह लेना सुख हुआ
परिधियाँ लाँघ लीं
बोलियाँ दुख लगीं
चुप्पियाँ बाँध लीं
सतर्ष को संघर्ष का हथियार
दो मुँहा धार, दो मुँहा धार
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