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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव भरोल
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
आपकी इमदाद कर सकता हूँ मैं
अपने पर खुद भी क़तर सकता हूँ मैं
जिस्म ही थोड़ी हूँ मैं इक सोच हूँ
गर्क हो कर भी उभर सकता हूँ मैं
इक फकत कच्चे घड़े के साथ भी
पार दरिया के उतर सकता हूँ मैं
कह तो पाऊँगा नहीं कुछ फिर भी क्या
आप से इक बात कर सकता हूँ मैं?
बाँध कर मुट्ठी में रखियेगा मुझे
खोल दोगे तो बिखर सकता हूँ मैं
</poem>
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|रचनाकार=राजीव भरोल
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
आपकी इमदाद कर सकता हूँ मैं
अपने पर खुद भी क़तर सकता हूँ मैं
जिस्म ही थोड़ी हूँ मैं इक सोच हूँ
गर्क हो कर भी उभर सकता हूँ मैं
इक फकत कच्चे घड़े के साथ भी
पार दरिया के उतर सकता हूँ मैं
कह तो पाऊँगा नहीं कुछ फिर भी क्या
आप से इक बात कर सकता हूँ मैं?
बाँध कर मुट्ठी में रखियेगा मुझे
खोल दोगे तो बिखर सकता हूँ मैं
</poem>