भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
हम बहुत कायल हुए हैं
आपके व्यवहार के।
आँख को सपने दिखायेदिखाए
प्यास को पानी ।
इस तरह होती रही
शब्द भर टपका दिए दो
होंठ से आभार के।
******
लाज को घूँघट दिखाया
पेट को थाली।
आप तो भरते रहे पर
हम हुए खाली।ख़ाली।
पीठ पर कब तक सहें
चाबुक समय की मार के।
*****
पाँव को बाधा दिखाई
हाथ को डण्डे।
दे दिए बैनर किसी ने
दे दिए झन्डे।झण्डे।
हो सके कब जीत के हम
हो सके कब हार के।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits