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Kavita Kosh से
हम बहुत कायल हुए हैं
आपके व्यवहार के।
आँख को सपने दिखायेदिखाए
प्यास को पानी ।
इस तरह होती रही
शब्द भर टपका दिए दो
होंठ से आभार के।
लाज को घूँघट दिखाया
पेट को थाली।
आप तो भरते रहे पर
हम हुए खाली।ख़ाली।
पीठ पर कब तक सहें
चाबुक समय की मार के।
पाँव को बाधा दिखाई
हाथ को डण्डे।
दे दिए बैनर किसी ने
दे दिए झन्डे।झण्डे।
हो सके कब जीत के हम
हो सके कब हार के।
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