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Kavita Kosh से
जो उलगुलान था, हूल था
जनवाद का फूल था
समग्र संबोधन था उसकी चेतना मेंµमें —
‘यह देश बहुजन का है
यह देश बहुजन का होगा
अस्तित्व और अस्मिता के साथ
आँख तरेरेंगे आदमखोर को,
एक की आवाज दूसरे तक
दूसरे की तीसरे तक
इसी तरह आवाज गूँज उठेगी
सात पहाड़ों पर, सभी दिशाओं से
आसमान में गीत होगाµहोगा —
‘आदिजन, बहुजन हैं हम
सदियों से शोषित जन हैं हम