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|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
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<poem>
तुम थीं
तो दूर-दूर तक दिखाई
नहीं पड़ती थी कविता
दबे पांव कभी चली भी आती तो
तुममें डूबा हुआ मुझको देखकर
लौट जाती थी चुपचाप।

अब नहीं हो तुम
और घेरे हुए है कविता मुझको
अनमनी-सी
खोजती है दूर तक
तुम्हारे कदमों के निशान।

</poem>
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