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कैसे प्रगतिशील ? / कैलाश पण्डा

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|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
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<poem>
काल के गाल में
जा रहे हैं हम
एक बड़ा सा दानव-
समय का
भुजा फैलाये, मुख बाये
सर्वभक्षी खींच रहा
अपनी ओर
हम दीन-हीन असहाय
कैसे प्रगतिशील ?
पा न सके पार
कितने आये
चूर्ण हो, चले गये-
समय के साथ
महानायक-खलनायक
कहां है ?
कितनी सरलता से
बतला देता है कोई औकात
कौन है नियामक
जो करता गर्व का मर्दन
अनन्त के आगे
हम रजकण भी नहीं ।

</poem>
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