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{{KKRachna
|रचनाकार=[[मीठेश निर्मोही]]
|अनुवादक=
|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
थारी-म्हारी
मुगती रा
पूरीजता सपना
जांणै
नदियां रौ
समदर में
गमणौ।
आव
भेळा होय
नदियां नै
निवतां
समदरनै
उणरा
अरथ सूंपां।
</poem>
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थारी-म्हारी
मुगती रा
पूरीजता सपना
जांणै
नदियां रौ
समदर में
गमणौ।
आव
भेळा होय
नदियां नै
निवतां
समदरनै
उणरा
अरथ सूंपां।
</poem>