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|संग्रह=चाँद का पैवन्द / कल्पना सिंह-चिटनिस
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<poem>

एक मस्जिद ऐसी
जहाँ हर रोज
नए नए लोग आकर
सिजदे करते हैं,
और वक़्त बेवक़्त
नमाज़ों की अदायगी होती है।

कोई आगे कोई पीछे उठता है
और आमीन कहकर चल देता है।

</poem>
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