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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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आंसू अपनी चश्मे तर से निकलें तो
ताज़ा दम हो जाएं घर से निकलें तो
बीमारों को थोड़ा-सा आराम मिले
बाहर दस्ते चारागर से निकलें तो
सच्चाई से पर्दा हट भी सकता है
अख़बारों की छपी ख़बर से निकलें तो
ना मुम्किन है वापस लौटें ख़ाली हाथ
चाँद पकड़ने लेकिन घर से निकलें तो
मंज़र में किरदार हमारा भी आ जाए
शर्त है पहले पस मंज़र से निकलें तो
</poem>
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आंसू अपनी चश्मे तर से निकलें तो
ताज़ा दम हो जाएं घर से निकलें तो
बीमारों को थोड़ा-सा आराम मिले
बाहर दस्ते चारागर से निकलें तो
सच्चाई से पर्दा हट भी सकता है
अख़बारों की छपी ख़बर से निकलें तो
ना मुम्किन है वापस लौटें ख़ाली हाथ
चाँद पकड़ने लेकिन घर से निकलें तो
मंज़र में किरदार हमारा भी आ जाए
शर्त है पहले पस मंज़र से निकलें तो
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