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पुरानी पीरहर गई मन कासारा ही धीर।दौड़ती थी पहलेतेज़ कलमरचती थी कितनेनूतन छंदअब हो गई बंद।उकेरती थीकूँची कितने चित्रएक से एकलगते थे विचित्र।अब तो बसबिखेरती है रंगअज़ब औ बेढंग।</poem>
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