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{{KKRachna
|रचनाकार=मेहर गेरा
|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हर कोई पूछेगा मुझसे मैं जिधर ले जाऊंगा
मैं उजड़ते शहर का एहसास धर ले जाऊंगा
मुस्कुराहट का लबादा ओढ़कर इस शहर में
ज़ख़्मे-दिल कब तक छुपाऊंगा किधर ले जाऊंगा
रास्ते में धूप की शिद्दत से बचने के लिए
मैं सफ़र में साथ एहसासे-शजर ले जाऊंगा
तेज़ हो जायेगी दरिया की रवानी उस तरफ
मेहर मैं अपने सफीने को जिधर ले जाऊंगा।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=लम्हों का लम्स / मेहर गेरा
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हर कोई पूछेगा मुझसे मैं जिधर ले जाऊंगा
मैं उजड़ते शहर का एहसास धर ले जाऊंगा
मुस्कुराहट का लबादा ओढ़कर इस शहर में
ज़ख़्मे-दिल कब तक छुपाऊंगा किधर ले जाऊंगा
रास्ते में धूप की शिद्दत से बचने के लिए
मैं सफ़र में साथ एहसासे-शजर ले जाऊंगा
तेज़ हो जायेगी दरिया की रवानी उस तरफ
मेहर मैं अपने सफीने को जिधर ले जाऊंगा।
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