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{{KKRachna
|रचनाकार=मनमोहन
|अनुवादक=|संग्रह=जिल्लत ज़िल्लत की रोटी / मनमोहन}}{{KKCatKavita}}
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बुश की भी आँखों का तारा
कैसा अच्छा मिला सहारा
मूँछें ऊँची रहें हमारी
ना फिर कोई आँख उठाए
ना फिर कोई आफत आफ़त आए
बम से अपने बच्चे खेलें
दुनिया को हाथों में लेलेंले लें
भूख गरीबी ग़रीबी और बेकारी
ख़ाली -पीली बातें सारी
अमरीका को भारत लाएँ
झुमका ,घुँघटा,कंगना,बिंदियाबिन्दियानबर वन हो अपना इंडियाइण्डिया
यही है अपना मोटो डार्लिंग
अच्छे हिन्दू बस बच जाएँ
</poem>