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अब तो मोहन से भी लागी लगन,
हम प्रिय प्यारे की छबि में मगन॥
अंग-अंग युगल शोभा सँवार,
लखि दोउन लानत कोटि मदन॥
मुसकात दोऊ जब मन्द-मन्द,
दामिनि सो दमकत दोउ रदन।
‘कीरति’ उन निवसतु युगल प्रिये,
रहे ध्यान सदा तब युगन युगन॥

</poem>
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