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<poem>
घर जब बना था
तो ख़याल नहीं था-

बरामदे का रंग
बेख़याली में ही चुना गया
लाल

वह उस वक़्त भी अखरा नहीं था
जब बुजुर्गों ने कहा-
यह लाल!

फिर बरामदे रँगे जाने लगे लाल
बाद में धुल-पुँछ कर
वे और चमकीले हुए

अख़रा वह तब
जब अंदाज़ा नहीं हुआ
कि फ़र्श पर
पानी गिरा है
या बह गया लहू!


</poem>
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