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{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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<poem>
ज़िन्दगी जब तलक तमाम न हो
रास्ते में कहीं क़याम न हो
घर में रिश्ते बिखर चुके लेकिन
दुश्मनों में ख़बर ये आम न हो
कुछ ताअल्लुक़ नहीं, नहीं न सही
ख़त्म लेकिन दुआ सलाम न हो
हंसते हंसते चलो जुदा हो जाएं
आंसुओं पर सफ़र तमाम न हो
</poem>
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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<poem>
ज़िन्दगी जब तलक तमाम न हो
रास्ते में कहीं क़याम न हो
घर में रिश्ते बिखर चुके लेकिन
दुश्मनों में ख़बर ये आम न हो
कुछ ताअल्लुक़ नहीं, नहीं न सही
ख़त्म लेकिन दुआ सलाम न हो
हंसते हंसते चलो जुदा हो जाएं
आंसुओं पर सफ़र तमाम न हो
</poem>