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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
हरि नाम के जपन से है मुक्ति पास आती
बहती पवन हमेशा खुशबू नयी उड़ाती

सूरज बिना जगत में होता नहीं सवेरा
यदि चाँद ही न होता रजनी किसे सुहाती

जो कर्म शील होते थक कर न बैठते हैं
हर हार है हृदय में आशा नयी जगाती

विश्वास की कहानी होने लगी पुरानी
आशा किरण न कोई है रोशनी दिखाती

है प्यास की नदी इक बहती यहाँ निरंतर
है तृप्ति नहीं मिलती जिसको न मुक्ति भाती

</poem>