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|संग्रह=शाम सुहानी / रंजना वर्मा
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<poem>
क्रूर नियति के खेल निराले
क्यों तू मन को व्यर्थ सँभाले

ऐसों का विश्वास न करना
तन के उजले मन के काले

सुख में सबने साथ निभाया
दुख की थाती राम हवाले

मन में पीर छुपाए रखना
हैं सब दर्द बढ़ाने वाले

जाकर अपनो को समझा दो
वो बाहों में नाग न पाले

</poem>