भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
और हर बार जब भी मैं पानी के क़रीब जाता हूँ
तो वहाँ हर बार मैं, बस, तेरी परछाईं ही पाता हूँ
1960
'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>