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|रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी'
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|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
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<poem>
दास्तां गुलामी की अगर पूछिये हमसे
आख में दहकता शोला जलाना होगा
बारूद की होली में खंजर की पिचकारी
घोड़ों की टाप से, सजा गुलशन मिटाना होगा

बुनियाद के नीचे बिछी बारूदी सुरंगे
खून से लाशों की दरिया बहाना होगा
यह कौन अपने घर को वीरान कर दिया
अब साजिश की किताबों को खोज लाना होगा

आंखों की बात कानों के रास्ते भूलोगे
राख बारुद को वापस ही लाना होगा
मेरे वजूद को खण्डर बनाने वालों को
याद की शूली पर फिर से चढ़ाना होगा

अकसर बुलंदी का क्यों नाम मेरे खाई है
इन्हीं गहराइयों से हमें खोज लाना होगा
मिटाओ पत्थर से हाथों की लकीरें सब
अब जमीं आसमां पे हक सम्मान पाना होगा
</poem>
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