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|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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<poem>
काम कोई ठीक अब होता नहीं हमसे
जो कभी होता था, होता था तेरे दम से।

जब न खड़के रब की मर्ज़ी के बिना पत्ता
आप किस्मत से कभी डरिये, न आलम से।

दिल के ज़ख्मों पर लगाने के लिए मरहम
कैसे बाहर आ गई तस्वीर अल्बम से।

हल तबस्सुम ने किया है मसअला ऐसा
था न मुमकिन तोप से, तलवार से, बम से।

अय खुशी नाराज़गी तुझको मुबारक हो
हो गई पुख्ता महब्बत अब मेरी ग़म से।

पल में गुलशन से उड़ा जज़्बा मुरव्वत का
जाने क्या 'विश्वास' बोली धूप शबनम से।
</poem>
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