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Kavita Kosh से
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कल रात भर
मेरे ज़ेहन से टकराती रही
सुबह देखा तो बस
दूर तलक पानी का विस्तार
जो रात भर मुझे
अपने पाश में
जकड़ती चली गई थी
मैं देख रही हूँ अनझिप
पानी पर उमड़ती लहरें
जिस पर लहरा रहा
मेरा ,आपका ,हम सबका भविष्यक्योंकि सत्ता भी बेशक्ल बेशक़्ल है उसकी भयानक आवाज आवाज़
सुन रहे हैं न आप ???
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