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<poem>
वो सफ़र में साथ है पर इसअदाकारी केसाथ
जैसे एक मासूम क़ातिल पूरी तैयारी के साथ

यह सियासत का करिश्मा है हमारे दौर में
तख़्त पर बैठा हुआ विश्वास ग़द्दारी के साथ

इन दुखों में क्या बताऊंँ ज़िन्दगी का हाल मैं
ढो रहा हूंँ बोझ अपना कितनी लाचारी के साथ

है बुझी-सी राख-सा दिखता समय पर दोस्तो
इसके भीतर हैं दबे जज़्बात चिनगारी के साथ

बँट गई है आजकल एहसास के टुकड़ों में तू
ज़िन्दगी तेरी करूंँ क्या बात हक़दारी के साथ

एक सच होठों पर ठहरा दर्द में डूबा हुआ
एक आंँखों से छलकता आज फ़नकारी के साथ

मौत से भी वह कहीं ज़्यादा मरा है उम्र-भर
जान फिर भी जाएगी इक रोज़ बीमारी के साथ
</poem>
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