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|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=समुद्र के आंसू
}}
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<poem>
पिंजरे में बराबर
बाघ और बकरी
बेबस फांदते कंदील
करते आज्ञा स्वीकार
जिजीविषा मजबूर करती है
खाने को
उसे
बांधिए डोर
ले चलिए चाहे जिस ओर
</poem>
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|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=समुद्र के आंसू
}}
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पिंजरे में बराबर
बाघ और बकरी
बेबस फांदते कंदील
करते आज्ञा स्वीकार
जिजीविषा मजबूर करती है
खाने को
उसे
बांधिए डोर
ले चलिए चाहे जिस ओर
</poem>