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अन्तस् की पीड़ा को गाकर
शब्दशिल्प में उसे पगाकर
मैं जीवन की राम कहानी सदियों तक दोहराऊँगा।
पीड़ाओं के गरल पान से ,मन शिवता को सम्बोधित है।
मानस में अनुभूति जगाकर और उसे अभिव्यक्ति बनाकर
पीड़ा के अनुनादित स्वर को जन जन तक पहुँचाऊँगा।
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