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Kavita Kosh से
<poem>
खाए हैं घाव
चलो उनको धो लें
गले से लगकर
जीभर हम रो लें।
राह हमारी
ये रोकेंगे सागर
खुशबू बनने को
फूलों -सा खिलना है ।
पास जो बैठे
वे मीलों दूर रहे
कोसों दूर हो तुम
फिर भी पास लगे ।
ईर्ष्या का चक्र
सिर पर सवार