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जीवन-धारा / महेन्द्र भटनागर

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:जीवन द्रोह अभिनव गीत
:सुनकर मत बनो भयभीत
:यह अरोहमय नूतन सृजन-संगीत !

:जड़वत्
:शैल-गति-निर्माण जैसी रीति की
:सहगामिनी-धारा
:मनुजता की सृजनशीला नहीं है !
:(कौन कहता, ‘व्योम यह नीला नहीं है !’)
:बढ़ रहा हो ढाल पर रुक-रुक
:धरा-केन्द्रिय-बल अभिभूत
:फैला ग्लेशियर गंगोत्री के पार,
:करता लघु सृजन-संहार ;
:लघु-लघु रूप का परिणाम
:जीवन-द्रोह का झरना नहीं है !

:लोकरुचि मेरे समय की दिव्य है,
:कोई मलिनवदना नहीं है !

:छा रही युग-भित्ति पर
:जगमग अरुणिमा री !
:बड़े विश्वास की
:गरिमा अनोखी री !
:1949
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