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Kavita Kosh से
हम सूरज के भरोसे मारे गए
और
सूरज
घड़ी के।
जो बंद इसलिए पड़ी है
कि हम चाबी लगाना भूल गए थे
और
सुबह है
कि हो ही नहीं पा रही है।