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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नोमान शौक़ }} टूटी हुई बांसुरीबाँसुरी<br />सूखे हांठों होंठों पर धरी है<br />
बरसों से<br />
टूटा हुआ गुलदान <br />
पड़ा है मेरे सामने <br />
फूलों की बिखरी पंखुड़ियां पंखुड़ियाँ भी<br />
नहीं चुनी जा सकतीं<br />
टूटी हुई व्हील चेयर पर बैठकर<br />
बल्कि<br />
और बढ़ती जा रही है<br />
टूटे हुए पांव पाँव की पीड़ा।<br />
मेरे आसपास<br />
कुछ भी वैसा नहीं<br />
जैसा होना चाहिए !