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|रचनाकार=नोमान शौक़
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कसमसाती शाम के खिलते बदन पर<br />
ये सितारों का लिबास<br />
जगमगाते शहर की ऊंची ऊँची प्राचीरें<br />
क़ुमक़ुमों से भर गई हैं<br />
रौशनी ही रौशनी है हर तरफ़<br />
तुम हो जहांजहाँ<br />
यहां यहाँ कितने युगों से <br />बस धुआं धुआँ है<br />गहरा मटियाला धुआंधुआँ<br />
जल रहा है कुछ<br />
कलियों से भी कोमल है शायद<br />
जल रहा है<br />
मैं जहां हूं ...जहाँ हूँ ...
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