भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वे कहते हैं अरे आप टी०वी० पर दिखे थे एक दिन
बाज़ारों में घूमता हूँ निश्शब्दनिःशब्द
डिब्बों में बन्द हो रहा है पूरा देश
पूरा जीवन बिक्री के लिए
'''रचनाकाल : 1990'''
</poem>