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Kavita Kosh से
मंद-मंद मुस्कुराती किरणें
मधुर मुस्कान बिखराती हुई
मेरे ऑंगन आँगन में आकर
उजाला करके घर में मेरे
आज सवेरे-सवेरे
रोज खिड़की से अंदर आती हैं
जाली से छनकर
मैं उस दिन उदास हो जाता हूँ
जिस रोज वे नहीं आतीं