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प्रीत जुदाई सावन-पतझड़ की बातों से, मेंक्यों खुद को तड़पाती हो।तुम उलझाती होमैं हर मौसम से गुज़री हूँ, छँट जाएगा जीवन का तम मुझको तुम क्या बतलाती हो।नाहक खुद को तड़पाती हो ।
मैं तेरे उर की पीड़ा से, हूँ तनिक नहीं अनजान सखी।सखी ।कुछ दिन इसको तू अब अपनाकर जी,
ये बात जरा बस मान सखी।
है पीड़ा आज नई तेरी, तब सहज सभी कह जाती तब सहन नहीं कर पाती होसावन पतझड़ की...............
नित हूक ह्रदय में उठती है, रातें भी तुझ सँग- सँग जगती है।है ।लरजे़ ये लब ख़ामोश तेरेह्रदय, आँख़ें चुपके से बहती है।हैं।गुज़रा वक़्त पलटकर मैं जानूँ तुम फिर, सारे आँसू पीड़ा को सारी पी जाती हो।हो ।सावन,पतझड़ की...........
ये जीवन बहता पानी -सा, चुन लेगा खु़द अपनी राहें।राहें ।जो गुज़र चुका तू भूल उसे, नव सपने फैलाते बाँहें।बाँहें ।निज को झूठी उम्मीदों से, तुम आख़िर क्यो बहलाती हो?सावन पतझड़ की................
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