भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक सच यह भी / कुमार विक्रम

1,841 bytes added, 13:20, 11 अगस्त 2020
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विक्रम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार विक्रम
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
बस अभी-अभी मैंने विषपान किया
यह विष अब मेरी धमनियों में उतर
मेरे खून का हिस्सा होकर
सारे शरीर में गिलहरियों की तरह
दौड़ेगा, कूदेगा, बैठेगा, सोएगा

लेकिन मेरे चेहरे की कांति
उस पर बिखरी-फैली आभा पर
कोई असर नहीं दिखेगा

क्योंकि अधपढ़ शहरी की भांति
सबके बीचों-बीच
रेलवे प्लेटफॉर्म पर बैठ
अपना थैला खोल
सबके सामने मैं पानी की बोतल
नहीं निकालता हूँ
मेरे गंदे शर्ट, मेरी पीली पैंट
मेरा पुराना लाल तौलिया
मटमैली चप्पल
यह सब मैं दिखने नहीं देता हूँ

क्योंकि मेरे पास है क्रेडिट कार्ड
और मैं करता हूँ सफर
बड़े हल्के होकर...
मेरे धमनियों का विष ही है काफी
मेरे सफर की ज़रूरतों के लिए
सफ़र के बोझ के लिए
चेहरे की कांति बनाए रखने के लिए

'''साक्षी भारत', २००६''
</poem>