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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
मंज़िल को पहुंच पाना कोई बात नहीं
घर लौट के भी आना कोई बात नहीं
है बात बड़ी कैसी कटी राहे-तलब
आराम से मर जाना कोई बात नहीं।
</poem>
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