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{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार
}}
{{KKCatNazm}}<poem>
इस ख़ला से ज़मीं का हर गोशा
जितना दिलकश दिखाई देता है
उसने ख़्वाबों में भी नहीं देखा
वह नहीं आएगा ज़मीन पे अब।
</poem>