भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
तब ' "में" मेरा कुछ भी
नहीं था मेरे पास
"मेरा" शब्द तो सुना ही नहीं था
कैसे जाऊँ माँ की गोद में वापस
समय कभी लौटा नहीं पीछे
गुलामी यूं चिपक कर रह गई॥।गई॥
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,192
edits