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{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
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आपके वास्ते सरकार बहुत अच्छा है
लोग होते नहीं बेदार बहुत अच्छा है
दर्द चहरे से उजागर नहीं होने देता
मेरे अंदर का अदाकार बहुत अच्छा है
बोलना झूट बुरी बात ग़लत बात मगर
उनसे कहना दिले बीमार बहुत अच्छा है
सुबह की चाय में कड़वाहटें भर देता है
आज आया नहीं अख़बार बहुत अच्छा है
दोस्ती के लिए करनी थी किसी को तो पहल
आपने फेंक दी तलवार बहुत अच्छा है
जीतने वालों के मिलते ही नहीं नाम व निशां
इश्क़ में तुम को मिली हार बहुत अच्छा है
</poem>
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आपके वास्ते सरकार बहुत अच्छा है
लोग होते नहीं बेदार बहुत अच्छा है
दर्द चहरे से उजागर नहीं होने देता
मेरे अंदर का अदाकार बहुत अच्छा है
बोलना झूट बुरी बात ग़लत बात मगर
उनसे कहना दिले बीमार बहुत अच्छा है
सुबह की चाय में कड़वाहटें भर देता है
आज आया नहीं अख़बार बहुत अच्छा है
दोस्ती के लिए करनी थी किसी को तो पहल
आपने फेंक दी तलवार बहुत अच्छा है
जीतने वालों के मिलते ही नहीं नाम व निशां
इश्क़ में तुम को मिली हार बहुत अच्छा है
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