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Kavita Kosh से
भूख लगती है हमें तब इंक़लाब आता है ।
हम नंगे बदन रहते हैं, झुलसे घोंसलों से
बादलों सा
शोर तूफ़ा॒नों का उठता है —
डिवीज़न के डिवीज़न मार्च करते हैं,
नए बमबार हमको ढूँढ़ते फिरते हैं ...
सरकारें पलटती हैं जहाँ हम दर्द से करवट बदलते हैं ।
हमारे अपने नेता भूल जाते हैं हमें जब,
भूल जाता है ज़माना भी उन्हें, हम भूल जाते हैं उन्हें
ख़ुद ।
और तब
इंकलाब आता है उनके दौर को ग़ुम करने ।
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