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Kavita Kosh से
एक ऐसी जगह, जो राजसी लोगों के प्रदूषण से मुक्त है
जहाँ उनकी खिड़की-बन्द गाड़ियाँ नहीं हैं, उनके सरकारी दूत नहीं हैं
जल्दी करो, कहीं कोई मुझे देख न ले — वह फुसफुसाया —फुसफुसाया—
मैं रात से निकला हुआ एक भगोड़ा हूँ
अन्धेरे से आया हुआ एक चोर ।
इससे उनका ध्यान खिंचेगा, उनमें ईर्ष्या जागेगी —
हमारे मृतकों के लिए यह सब ज़रूरी नहीं । बस, सादगी, पवित्रता, ख़ामोशी,
उन्हें शहद, अगरबत्ती और खोखले कर्मकाण्ड नहीं चाहिए ।चाहिए।
बल्कि एक सादा पत्थर ही काफ़ी है, जिरैनियम का एक गमला, —
एक गुप्त संकेत, या फिर कुछ नहीं । —