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<poem>
रास्ते भर ये सोचता हूँ मैं
घर से क्या सोच कर चला हूँ मैं

कुछ भी दिखता नहीं सिवा तेरे
जाने किस मोड़ पर रुका हूँ मैं

अब मुझे आँधियों का डर कैसा
सर से पा तक बिखर चुका हूँ मैं

तू मुझे मत पुकार तनहाई
तू अभी जा कि सो रहा हूँ मैं

हो गए सब इधर-उधर लेकिन
जिस जगह था, वहीं खड़ा हूँ मैं
</poem>
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