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Kavita Kosh से
कि ऐसी निस्पृह दरिद्रता मौजूद है वहाँ,
कि ऐसी मूढ़ अज्ञानता वहाँ जनती है बच्चे
हताशा के की इन अकिंचन शरणस्थलियों के परदे में —
कि स्वयं तुम्हें ही न तो कोई परवाह रहती है
न ही रहता है पौरुष ललकार कर कहने का