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Kavita Kosh से
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जिसके पथ में फूल खिलाए
उसने ही घर रोज़ जलाएजलाए।
हम क्या करते छाले धोते
घोर अँधेरों में छुप रोते।
जिसको समझा ये मेरे हैं
विषबीज सदा वे ही बोते।5माना मिलने की आस नहींफिर भी मन हुआ निरास नहीं ।साँझ हुई मुझे गीत मिलागीतों में मन का मीत मिले॥कब मीत बसा आ साँसों मेंहो सका मुझे आभास नहीं।
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