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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
अम्मा, ज़रा देख तो ऊपर
चले आ रहे हैं बादल ।
गरज़ रहे हैं, बरस रहे हैं,
दीख रहा है जल ही जल ।
हवा चल रही क्या पुरवाई,
झूम रही डाली - डाली ।
ऊपर काली घटा घिरी है,
नीचे फैली हरियाली ।
भीग रहे हैं खेत, बाग़, वन,
भीग रहे हैं घर-आँगन ।
बाहर निकलूँ, मैं भी भीगूँ,
चाह रहा है मेरा मन ।
</poem>
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अम्मा, ज़रा देख तो ऊपर
चले आ रहे हैं बादल ।
गरज़ रहे हैं, बरस रहे हैं,
दीख रहा है जल ही जल ।
हवा चल रही क्या पुरवाई,
झूम रही डाली - डाली ।
ऊपर काली घटा घिरी है,
नीचे फैली हरियाली ।
भीग रहे हैं खेत, बाग़, वन,
भीग रहे हैं घर-आँगन ।
बाहर निकलूँ, मैं भी भीगूँ,
चाह रहा है मेरा मन ।
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