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{{KKRachna
|रचनाकार=देवनीत
|अनुवादक=रुस्तम सिंह
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
आ जाओ अन्दर
मेरी कोठड़ी का लाईव हॉल
मैट पर नाराज़ पड़ा पायदान
साथ ही अण्डरवियर
और रुमाल
पड़े हैं
रुमाल के साथ ही कल बाँधी पगड़ी के
खण्डरात
मेहदी हसन की ग़ज़ल
चल रही है
बोतल और साथी उसकी अन्य सामग्री में
घिरा हूँ मैं
अपना अकबर हूँ मैं
अब
समय
मेरा बीरबल नहीं ।
'''मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह'''
</poem>
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|अनुवादक=रुस्तम सिंह
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मेरी कोठड़ी का लाईव हॉल
मैट पर नाराज़ पड़ा पायदान
साथ ही अण्डरवियर
और रुमाल
पड़े हैं
रुमाल के साथ ही कल बाँधी पगड़ी के
खण्डरात
मेहदी हसन की ग़ज़ल
चल रही है
बोतल और साथी उसकी अन्य सामग्री में
घिरा हूँ मैं
अपना अकबर हूँ मैं
अब
समय
मेरा बीरबल नहीं ।
'''मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह'''
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