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{{KKRachna
|रचनाकार=द्रागन द्रागोयलोविच
|अनुवादक=रति सक्सेनाअनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
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<poem>
सारी शाम शहर में घूमते-घूमते
मुझे एहसास हुआ कि
हर शहर हमारे लिए
अजनबी होता है
चाहे हमारे हाथ में
उस शहर के कुछ दरवाज़ों की
चाभी ही क्यों न हो ।
अचानक झींसी पड़ने लगती है
और चारों ओर फैले वसन्त के स्वर मन्द हो जाते हैं
पर मैं वैसे ही घूमता रहता हूँ,
बस्स, मार्शल स्टोर पर जाकर एक छतरी ख़रीद लेता हूँ
बेलग्राद में भी बारिश हो रही है।
'''अँग्रेज़ी इस शहर की गलियों से अनुवाद : अनिल जनविजय'''गुज़रते हुएमैं जैसे दुनिया भर के सभी शहर घूम लेता हूँहर जगह बसी हुई है वही उदासीनता ।मेह के बरसने की वही गुनगुनाहट सुनाई देती हैवसन्त का मौसम थोड़ा पहले आ जाता हैया आता है कुछ बाद मेंवही एकान्त और वही उदासीमहसूस होती है हर शहर में ।
यह मेरा ही शहर है
जो हज़ारों मील दूर है
मुझसे ।
 
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
'''लीजिए, अब अँग्रेज़ी अनुवाद में यही कविता पढ़िए'''
Dragan Dragojlović
thousands of miles
away from me.
 
Translated into English by AGRONSH
</poem>
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