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Kavita Kosh से
जहाज़ के अगले हिस्से में खड़े नाविक जैसी
तुम अब भी पल्लवित हुई गीतों में , तुम अब भी टूटी धाराओं में
ओ अवशेषों की गर्त, विस्फारित कटु कूप ।