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सब कुछ जैसा है रहेगा
पर हम नहीं रहेंगे ।
सब कुछ लुटा चुकने के बावजूद
कम नहीं होगा वैभव इस दुनिया का ।
 
आकाश के चेहरे पर
लुढ़क आया एक दहकता आँसू
कुछ भी नहीं है इसमें असाधारण ।
वैसे मृत्यु का डर मुझे नहीं
पर तोड़नी होगी विवेकहीनता
धरती और आकाश के रहस्यमय सम्बन्ध ।
चाहे वे रहे धागे की तरह लगभग अदृश्य
या खेतों के ऊपर छाए एकान्त मौन
या अलाव के पास आहिस्ते से गूँजते गीत
या देर से निकल आए आँसुओं की तरह ... ।
 
यही था क्रम चीज़ों का आने के पहले
और यही रहेगा मेरे बाद ।
फिर भी आसान नहीं है घटित हुए से अलग होना ।
उस सबसे जिसने हमें आकृष्ट किया
या बना रहा जो उदासीन हमारे प्रति ।
 
लगातार आते रहेंगे लोग इन रास्तों पर
बार-बार पुराना देवदार
 
 
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