भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
दे बैठा था वह जान इन दाँतों से भिड़ते हुए
दिखाई दे रहा है वही खोर्सख़ोर्स* आकाश में
मूसलाधार बारिश ने उसे जीवित देखा था
अब वह मिट्टी का ढेला है जमा हुआ ।